"ओ! हो! यश!....ये क्या शोर मचा रखा है।" प्रज्ञा दरवाज़े खोलते ही यश पर चिल्ला पडती है। लेकिन यश अपना हाथ फिर भी डोर बैल से नहीं हटाता... .शायद प्रज्ञा की आवाज़ को वो सुन ही नहीं पाता या फिर उसके दिमाग मे चल रहे शोर मे प्रज्ञा की आवाज़ कहीं गुम ही हो जाती है…प्रज्ञा गुस्से से यश का हाथ बैल पर से हटाकर नीचे झटक देती है…यश का ध्यान हटता है और वो एक दम चौंक जाता है क्यूंकि प्रज्ञा और अविनाश रोज़ अपने क्लिनिक से थोड़ा लेट आते थे लेकिन आज दोनों जल्दी घर आ गए थे...तो यश