नीलांजना--(अंतिम भाग)

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सुखमती का ऐसा रूप देखकर, नीला का हृदय घृणा से भर गया, उसे लगा कि वो ऐसी मां की पुत्री है जो अपने स्वार्थ के लिए किसी की भी बलि दे सकती है, उसे बहुत बड़ा आघात लगा,उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, उसे अब कोई भी मार्ग नहीं सूझ रहा था। उसे लगा कि क्या?राज्य-पाट और धन-वैभव की ही प्रधानता रह गई है मनुष्य के जीवन में, किसी की भावनाओं और संवेदनाओं का कोई अर्थ नहीं है ,बस मनुष्य आगे बढ़ना चाहता है, किसी भी इंसान के कंधे पर पैर रखकर।। क्या, मानव जीवन मात्र इसलिए मिला है