दोनों साले बन्दूके ले कर आ पहुचे घोडा भी खिंचकर आ गया सूबेदार साहब शिकारी कपड़े फन कर तैयार हो गये अब गजेन्द्र के लिए कोई हिला न रहा उसने घोड़े की तरफ कनखियों से देखा, बार बार जमीन पर पैर पटकता था, हिनहिनाता था, उठी हुई गर्दन, लाल आँखे, कनौतिया खड़ी, बोटी बोटी फड़क रही थी उसकी तरफ देखते हुए भी डर लग रहा था गजेन्द्र दिल ही दिल में सहम उठा मगर बहादूरी दिखाने के लिये वह घोड़े के पास जा कर उसके गर्दन पर ऐसी थपकियाँ दी की जैसे वो पक्का शहसवार है बोला जानवर तो शानदार है मगर मुनासिब मालुम नहीं होता तो फिर...