धनिया धीरे धीरे चलती हुयी कक्ष के बाहर दालान में आ गयी । बाबू उसे सहारा देने के लिए उसके साथ ही चल रहा था । लेकिन धनिया को शायद उसके सहारे की जरुरत नहीं थी । धनिया और बाबू चहलकदमी करते हुए दालान के दुसरे कोने तक चले आये ।इधर अमर पहले से ही दालान में एक खम्बे की ओट में अपने आपको छिपाके खड़ा था । धनिया बाबू के संग चलते हुए उसी खम्बे के नजदीक से होकर दालान के दूसरी तरफ चली गयी ।अमर उसके जाने के बाद खम्बे की ओट से निकलकर बाहर आ गया और