कुँवर अपना बलिदान दे कर अपने गाँव को उस शैतान विमलराय से बचाना चाहती है। पर उसके पिताजी भूपतदेव इस बात से हिचकिचाते है। " ये क्या कर रही हो बेटा..? " - भूपतदेव कुँवर से पूछते है। " कृत्स्नं को फोन लगा रही हूँ। " मोबाइल की रिंग बजती है.... " हेल्लो..." - कृत्स्नं फ़ोन उठाके बोलता है। " हेल्लो... तुम किसी और से सदी कर लो। मुजे तुमसे कोई रिश्ता नही रखना। " - कुँवर इतना बोल कर फ़ोन रख देती है और भूपतदेव से कहने लगी- " बापू चलिए अग्निसमाधि की