बिछोह बहन मुझ से सन् १९५५ में बिछुड़ी| उस समय मैं दस वर्ष का था और बहन बारह की| “तू आज पिछाड़ी गयी थी?” एक शाम हमारे पिता की आवाज़ हम बहन-भाई के बाल-कक्ष में आन गूँजी| बहन को हवेली की अगाड़ी-पिछाड़ी जाने की सख़्त मनाही थी| अगाड़ी, इसलिए क्योंकि वहाँ अजनबियों की आवाजाही लगी रहती थी| लोकसभा सदस्य, मेरे दादा, के राजनैतिक एवं सरकारी काम-काज अगाड़ी ही देखे-समझे जाते थे| और पिछाड़ी, इसलिए क्योंकि वहाँ हमारा अस्तबल था, जहाँ उन दिनों एक लोहार-परिवार घोड़ों के नाल बदल रहा था| “मैं ले गया था,” बहन के बचाव के लिए मैं