दह--शत - 55

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एपीसोड – 55 “हाँ ,आ गये बोलो?” अभय बेशर्मी से विकेश के घर की पार्टी से लौटकर कहते हैं। “पार्टी में जाने के लिए उस बदमाश का घर ही मिला था?” “हाँ....अब तो मैं ऐसी पार्टी में जाया ही करूँगा....रोक कर तो देखना।” ये वहशीपन विकेश के भड़काने पर ही उभरता है। “नहीं रुके तो इस नर्क में स्वयं ही जलोगे।” “तुम्हें क्या है?” अभय लापरवाह अंदर के कमरे में चले जाते हैं। समिधा क्या करे ? कविता का शहर में ही तीन दिन छिपे रहने का नाटक, विकेश के घर की वह पार्टी-एक संकेत है-भयानक खेल कभी भी आरम्भ