नविता की कलम से... - 4

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?प्यार का इज़हार ??ख्वाहिश थी मेरी ,खुद को पाने की हवा के साथ लहराने की ,ख्वाहिश थी मेरी, परिंदो जैसे खुले आसमान मे घूम पाने की ,सपनो को पंख लगाने की lख्वाहिश थी मेरी , किसी को अपना बनाने की पर किस्मत का था, अलग ही विचार कर ना पाये , हम अपने प्यार का इज़हार फिर भी दिखता था हमे एक दूसरे के लिए प्यार ख्वाहिश थी मेरी, करे हम अपने प्यार का इजहार करते थे जो हम एक दूसरे को प्यार पर करना पाये फिर भी , एक दूसरे को अपने प्यार का इजहारएक दिन था ऐसा आया ,उसने ख़त था मुझे पकड़ाया ,मन मे ख़ुशी का