सुलझे...अनसुलझे कहीं थी मज़बूरी...तो कहीं ------------------------------ आज सेंटर की सीढ़ियों को चढ़ते समय अनायास ही मेरी नज़र एक औरत पर गई। जो कुछ ज्यादा ही सिकुड़कर सेंटर की बेंच के एक कोने पर चुपचाप बैठी हुई थी| उसको अपने कुछ ब्लड-टेस्ट करवाने थे| रसीद बनवाकर वह अपने टेस्ट करवाने की बारी आने का इंतज़ार कर रही थी। उसको देख कर न जाने क्यों मेरे मन में उसके बारे में जानने की इच्छा हुई| अपने चैम्बर में आकर पूजा करके जब मैं अपनी कुर्सी पर बैठी तो फिर से अचानक मेरी नज़र उसी स्त्री पर पड़ी| न जाने क्यों मुझे लगा कि