कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 14 जिसके पास कुछ याद रखने के लायक कोई अतीत ही न हो और वर्तमान भी सुलगता सा हो तो भविष्य ही बचता है जिस पर मन के पांव रख कर धीरे-धीरे चला जा सकता है और यदि पूरा का पूरा भविष्य भी किसी अंजान अंधेरे में गुम होने लगे तो वे मन के पांव भी चलने से इंकार कर देते हैं। शायद ऐसे ही भावों से ग्रस्त रजिया बेग़म इतनी रात बीत जाने के बाद भी जागती रही हैं। न जाने कहाँ व्यर्थ ही उनका मन भटक रहा था। तभी उन्हें लगा कि