त्रिखंडिता - 2

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त्रिखंडिता 2 अनामा की डायरी रमा एक अनाम अकेली स्त्री की डायरी के पन्ने पलट रही है।यह डायरी उसे फुटपाथ पर बिकने वाली पुस्तकों के ढेर में मिली थी।शीर्षक ने प्रभावित किया तो ले लिया था।डायरी नयी थी।समय-समय पर लिखी डायरी के पन्नों से उस स्त्री के मनोभाव झांक रहे थे।डायरी पढ़ कर रमा को लगने लगा है कि यह हर अकेली स्त्री की व्यथा है, उसकी भी। 5 जनवरी कभी-कभी मेरा क्रोध चरम पर होता है। मुझे सब पर गुस्सा आता है। अपने आप पर भी ! लोगों का स्वार्थी रूप मुझे पीड़ित करता है । अपने आप को