कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 13 रजिया बेग़म सहसा किसी गहरे समंदर में डूब गईं जैसे। वह पलों तक खामोश बुत सी बनी खड़ी रह गईं। सभी एक सहानुभूति के साथ रजिया बेग़म का चेहरा निहारते रह गए। फिर वह थोड़ा संयत होती हुई हँस कर बोलीं- ‘‘वह सब ख़ाक़ हो जाने से मेरा कुछ भी नहीं गया। मेरा गला और तरन्नुम तो बचा है।...कहीं भी बैठ कर सब बना लूंगी।‘‘ इस तूफान जैसी बात को वह एक मामूली तिनके की तरह उड़ा कर जिस तरह अभी सामान्य हुयी हैं वह अद्भुत था। वह फिर मुस्कुराती हुई केशव नाथ