यादों के उजाले - 5 - अंतिम भाग

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यादों के उजाले लाजपत राय गर्ग (5) प्रह्लाद नौकरी पाने में सफल रहा। नौकरी लगने के पश्चात् उसके विवाह के लिये रिश्ते आने लगे। वह टालमटोल करता रहा। एक रविवार के दिन विमल प्रह्लाद से मिलने उसके घर आया हुआ था। मंजरी ने मौक़ा देखकर बात चलायी - ‘विमल, अब तुम दोनों विवाह कर लो। बहुओं के आने से घरों में रौनक़ आ जायेगी।’ ‘दीदी, मैं तो तैयार हूँ। किसी अच्छी लड़की का रिश्ता आने की बाट जोह रहा हूँ। लेकिन, प्रह्लाद के लिये तो अभी आपको डेढ़-दो साल इंतज़ार करना पड़ेगा।’ प्रह्लाद ने विमल की तरफ़ आँखें तरेरीं, किन्तु