रीति - रिवाज

  • 6.5k
  • 1.2k

कहानी-- रीति - रिवाज --आर. एन. सुनगरया हर रोज मेरी पत्नि गीता पश्चिम की ओर यानि जिधर से मैं आता हूँ, बाजार की ओर, खुलने वाले दरवाजे में खड़ी, मेरी प्रतीक्षा में नज़रें बिछाये रहती थी, लेकिन आज?.........ख़ेर, लगी होगी