नीलांजना--भाग(५)

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प्रात:काल हो चुका था,सूरज की किरणें अपनी लालिमा चारों ओर बिखेर चुकी थी,हरे हरे वृक्षों पर पंक्षी चहचहा रहे थे,जंगल की अपनी ही शोभा होती है, वहीं जंगल रात्रि को बड़ा ही भयानक प्रतीत होता है और प्रात:काल होते ही उसकी सुंदरता अलग ही दिखाई देती है।। दिग्विजयसिंह और सुखमती उसी मार्ग से आए थे जो मार्ग सुखमती ने सौदामिनी को सुझाया था,जब वो नीलांजना को लेकर भागी थी। रात भर नाव से नदी पार की और फिर जंगल में भागते भागते दिग्विजय और सुखमती बहुत थक गये थे, उन्हें दूर से एक गांव दिखाई दिया, दोनों वहां पहुंचे।। गांव