"पता है बारिशों में मैं सब कुछ भुल जाता हूं, ये रंगतें, ये बहार, हरियाली और उसमें तुम्हारा हाथ पकड़ लेना सच में बहुत खूबसूरत है... काव्या तुम सुन रही हो न",किशोर ने बारिश में एक कैफे के कोने बैठकर चाय पीते हुए काव्या का हाथ थामते हुए कहा। काव्या अचानक से बोली,"तुम कुछ कह रहे थे, किशोर! "नहीं, कुछ नहीं",किशोर ने कहा,"कहीं खो गई हो काव्या, बताओ न।" काव्या और किशोर ग्रैजुएशन के फर्स्ट ईयर में थे।शहर के एक कॉलेज से कम्प्यूटर साइंस में बीएससी कर रहे थे।उनकी दोस्ती जो बहुत अजीब तरीके से शुरू हुई थी।