कैसी आधुनिकता, कैसी मानसिकता

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कैसी आधुनिकता, कैसी मानसिकता अन्नदा पाटनी कावेरी का फ़ोन आया," क्या कर रही है ? आजा बैठेंगे। चाय वाय पियेंगे ।" मैं बोली," क्या ख़ाली बैठी है ? "अरे क्या ख़ाली,ख़ाली होते हुए भी भरी बैठी हूँ।" कावेरी की यही ख़ासियत है, बातों को ऐसा घुमाती है कि सामनेवाले की उत्सुकता बढ़ जाय। मुझे कौन सा काम था सो पहुँच गई उसके पास । ड्राइंग रूम में पैर पसारे बैठी थी । मुझे देखते ही बोली," आ जा, आ जा ।" फिर अपने पास ही बैठा लिया । थोड़ी देर इधर-उधर की बातें हुईं । फिर मैने पूछा," क्या चल