नकटी - भाग-5

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शाम को संजय कंचन के साथ घूम रहा था। “कैसा रहा तुम्हारा दिन?” “तुम क्या सोचती हो?” “ये डिफाल्टर बडे ही ढीठ किस्म के लोग होते हैं ।“ “अरे नहीं। बड़े ही सोफस्टिकेटेड लोग हैं । पिछली बार शायद समझ नहीं पाए। इस बार मैं गया और उनको इज्जत दे कर बात की तो वे मान गये। प्रतीक ने चैक दे दिया है। मनीष कल जमा करवा देगा।“ “क्या बात है गुरू! फिर तो तुम्हे मेरी जरूरत ही नहीं रहेगी।“ “ऐसा हुआ है कभी कि ज़िन्दगी को साँसों की जरुरत ना रहे“ संजय ने उसकी नज़रों में झांकते हुए कहा ।