कहानी - संदूक में सपनासंदूक में सपनामैं कब से अनमनी सी बैठी कभी अतीत की झांकियों में खो रही थी, कभी वर्तमान में लौट रही थी तो कभी भविष्य का सपना देखने की कोशिश कर रही थी पर कहीं भी स्थिर नहीं रह पा रही थी। अजीब सी कशमकश थी। क्या करना है, क्या नहीं करना....बंद दरवाजों के पीछे कौनसा सच छुपा है.... कौनसा मोङ़ मुङ़ना सही होगा और कौनसा गलत....समझ नहीं आ रहा था।जिंदगी में बहुत कुछ मिला पर क्या वो मिला जिसे मैं पाना चाहती थी, जिसका सपना मैनें जागृत आंखों से देखा था, जिसे पाने की पूरी