सुलझे...अनसुलझे - 2

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सुलझे...अनसुलझे अंधी-दौड़ ------------- मैं उसको पिछले पच्चीस-तीस मिनट से एकटक गुमसुम दीवार की घड़ी को लगातार ताकते हुए देख रही थी। करीब-करीब सत्रह-अठारह वर्ष की उसकी उम्र होगी। उसकी आँखों में मुझे बहुत बेचैनी नज़र आ रही थी। बीच में उसके हाव-भाव देख कर मुझे महसूस हुआ कि शायद उसने अपनी माँ को चलने के लिए बोला क्योंकि उसका उठकर वापस बैठना, इस बात की सूचना दे रहा था। मां के कहने से वह बैठ गया| पर मुझे उसकी मनःस्थिति बार-बार विचलित कर रही थी| मैंने स्टाफ़ को बोलकर किशोर और उसकी मम्मा को अंदर बुलाया| माँ-बेटे चेम्बर में साथ-साथ