नीलांजना--भाग(४)

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भांति-भांति के प्रकाश से प्रकाशित, भांति-भांति के सुगंधित पुष्पों से सुसज्जित , भांति-भांति के इत्रो की सुगंध पूरे कक्ष को सुगन्धित कर रही थी और भांति-भांति के वाद्ययंत्रों से ध्वनियां निकाल रही रमणियां,कक्ष की शोभा देखते ही बनती थी। उस पर सुखमती का प्राणघातक सौंदर्य,उसकी भाव-भंगिमा देखकर बस चन्द्रदर्शन तो अपने प्राण, न्यौछावर करने के लिए लालायित हो बैठे। धानी रंग के परिधान में सुखमती का रूप बहुत ही खिल रहा था, नृत्य करते समय वो किसी स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही थी,उसका अंग-अंग थिरक रहा था, उसकी नृत्य-मुद्राएं चन्द्रदर्शन के हृदय को विचलित कर रही थी।