जैसे कि हमने देखा कुँवर अचानक ही कृत्स्नंसिंह का नाम लेती है। ये सुनकर उसके बापू भूपतदेव चोक जाते है। और आश्चर्यजनक हो कर पूछते है- " कोन है ये कृत्स्नं ? " " बापू माफ कर दीजिए। मेने आपको बताया नही। मैं जब कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी तब कॉलेज की लाइब्रेरी में मुजे कृत्स्नं मिला था। " अचानक किताबों की अलमारी की दूसरी और से थोड़ा सा धक्का लगा। " कोन है पीछे ? " - कुँवर पूछती है। " सॉरी मिस, गलती से धक्का लग गया। मेरा नाम कृत्स्नं है ।