वर्माइन ने गोपी को संडास के बाहर बिठाया और खुद पास के तालाब से पानी भरने चली गयी, चारों ओर सन्नाटा पसरा था जो झिंगूर की आवाजों से बार बार टूट रहा था | वर्माइन गोपी को कोसते कोसते जल्दी जल्दी तालाब के पास पहुंची और बाल्टी को तालाब से भरकर जैसे ही पीछे मुडी तो सामने देख कर उसकी चीख निकल पडी | चीख सुनकर पास के लोग बाहर आये तो देखा वर्माइन बेहोश पडी थी और पानी की बाल्टी पास मे लुढकी पडी थी | जब वर्मा जी को पता चला तो वो दौडे दौडे आये और वर्माइन