उलझन डॉ. अमिता दुबे पन्द्रह रविवार को सुबह दस बजे अंशिका सोमू के मम्मी-पापा के साथ कलिका के यहाँ आ गयी। वह सोमू के साथ खड़े होकर लाॅन में की जाने वाली सजावट देख रही थी कि गेट की घण्टी बजी। गेट खुलने पर सामने अपने पापा को देखकर वह हतप्रभ रह गयी। मारे खुशी के उसके मुँह से एक शब्द नहीं निकला। हाॅ जैसे-जैसे लम्बा लाॅन पारकर पापा पास आते गये उसकी आँखों से झर-झर आँसू गिरने लगे। पापा जब बिल्कुल पास आ गये तब उसे होश आया और वह पापा से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। वह इतना बिलखी