निम्मो.. !निम्मो... निम्मो.... अरे कहां मर गई कमब्खत मारी.. निम्मो- जी आई अम्मी... और निम्मो अपने सिर को दुपट्टे से ढकते हुए दौड़ती सी बैठक बाले कमरे की तरफ आती है. उनके पास मौलवी को देख उसके कदम ठिठक से जाते है अम्मी के पास बैठा 50 साल का खाने वाली निगाहों से मौलवी निम्मो को देख रहा है. अम्मी - अब इतनी दूर क्यों ख़डी हो गई.. इधर आ निम्मो- हम यहीं ठीक है अम्मी.. !अम्मी- क्या तुझें पता नहीं है के आज महीने की आख़िरी जुमे रात है आज उतरा होना है निम्मो चुप चाप अपनी नज़रे ज़मीन में गढ़ाए ख़डी रहती है.