बंध कमरे का चोरस विभा रानी सुपर्णा की नींद खुली और समवेत स्वरों का एक लहराता झोंका खिड़की से होते हुए उसके कानों से टकराया। ढोल, कंसी, झांझ, हारमोनियम के मिले जुले स्वर और हरे कृष्णा-हरे कृष्णा गाते चले जाते हुए। बहुत ही अजीब प्रांत है यह बंगाल। भक्ति और श्रृंगार का उद्भुत समन्वय। चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द की धरती पर एक से एक भक्ति-गीत अजस्र धारा में फूटते हैं। रवीन्द्र संगीत तो प्रत्येक बंगवासी की जिह्वा पर ही विराजमान होता है। शिखा साहा-पैतालीस वर्षीया कुंवारी प्रौढ़ा जिसने जीवन में दो को ही अभिप्रेत माना था जिसमें से पहले,