इंतज़ार नमिता अपनी बालकनी में बैठी थी की अचानक उसकी नज़र एक आदमी पर पड़ी जो अपने ठेले पर ढेर सारे पौधे बेच रहा था। उस ठेले को देखकर यूँ लगता था मानो किसी सुन्दर पुष्पवाटिका में पहुँच गए हो, लाल,पीले गुलाब,बड़े बड़े जासून के फूल और खिलखिलाता हुआ मोगरा उस मोगरे की महक सूंघते ही नमिता पांच वर्ष पीछे अतीत में डूबती चली गयी। मोगरा और रवि मानो एक दूसरे के पर्याय थे -हमेशा खुशियां बिखेरते और खिलखिलाते हुए। मजे की बात तो यह थी की रवि को मोगरे प्राणप्रिय थे इसलिए जब भी नमिता से मिलने आता