अबतक की कहानी थी स्रुती दिपक् के आगे अपनी अतीत के दर्द भरे पन्हें को खोल रही थी । अब आगे........ दिपक् :- फिर क्या हुआ ? तुने क्या किया ? स्रुती :- बचपन से मेरी एक आदत है की, में हर किसी को प्यार देती हुं पर किसीको आशुं नहीं दे सकती हुं । भलेही मुझे जितनी दर्द हो पर में सामनेवाले की दर्द कम करने केलिए कोसीस जरूर करती हुं । कोई मेरे लिये बुरा बने ये मुझे मजुंर नहीं है । मुझे पता थी उसके बिना जी