भाषा और शिल्प भाषा अभिव्यक्ति का सहज और प्रमुख माध्यम है। साहित्य के क्षेत्र में अनुभूति के रूप-विधान की सभी पद्धतियाँ भाषा पर ही आश्रित होती हैं। वह सृजन और आस्वाद का मध्यवर्ती व्यापार है। भाषा की अर्थवत्ता और शक्तिम्त्ता के द्वारा ही अनुभूति को प्रभावशाली, ग्राह्य और कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। श्रेष्ठ भाव, विचार और कल्पना समर्थ भाषा के अभाव में अनभिव्यक्त या अपूर्ण व्यक्त रह जाते हैं। जीवन्तता भाषा का प्रधान गुण है। व्यवहार क्रम में भाषागत धारणाएँ और बिम्ब रूढ़ होते रहते हैं। उसकी व्यंजना-क्षमता घिस जाने से उसमें अर्थध्वनन की