कितनी अजीब बात है. इंसान तंन्हाईयों में भी तंहा नहीं रहता. किसी की यादें, किसी के साथ गुजरेलम्हें, कुछ ख्यालात, कुछ सवालात, कुछ उलझनें... दिमाग में आडियो-वीडियो चलते रहते हैं. स्वीच ऑफ ही नहीं होता दिमाग का. अरे,जनाब!जब तक सांसें हैं, दिल की धड़कनें हैं-दिमाग का स्वीच ऑफ कहां होगा. जहां सांसें रूकी सब बंद.दिमाग का थियेटर भी बंद. मैंने एक गहरी सांस ली और कार की स्पीड़ बढ़ा दी.सडक़ खाली थी.कम स्पीड़ पर चलने का कोई औचित्य नहीं था.ड्राइविंग करते हुए मेरी नजरें सड़क किनारे लगे पाकड़ के पेड़ों के बीच खड़े अमलतास के पेड़ों पर उलझ जातीं. फूलों