सफर-ए-अल्फाज़

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1.कोई गुज़रे या ना गुज़रे इन आंखों से जो मिरा अश्क़ गुज़र गया.. !अपना तो इक अश्क़ ही था जो अपनों की याद में कहर गया...!कोई देखें या ना दिखे अपनों से मिले जो ज़माना गुज़र गया. !!दूर बैठे रहें नज़दीक से जो अपनों का काफिला गुज़र गया.. !------------2.ज़िन्दगी जीना भी एक पेंचीदा रास्ता है जिसे देखो उसे बस मतलब का वास्ता है.. !!-------------3.हकीम-ए- हमदर्द भी अब वैसे हुआ करते नहीं.. !बात तो वो किया करते है मगर दुआ करते नहीं.. !!--------------4.याद बहुत आती है ज़िन्दगी गुज़री हुई ख्वाब में देखते रहें ज़िन्दगी सबरी हुई.. !!--------------5.खुश रहने के लिए भी क्या किसी