अर्द्धांगिनी डोरबैल बजते ही मनीषा ने पहले दीवार घड़ी पर निगाह डाली। मन ही मन वह सोचने लगी कि अभी तो इनके आने का समय नहीं हुआ है। पता नहीं कौन है? दरवाजा खोलकर देखा तो अपनी प्रिय सहेली संगीता को खड़ा पाया। वह उत्साह से उसके गले लग गयी। उसका हाथ पकड़कर अन्दर लाते हुए बोली-घर कब आयी। ’’बस कल ही’’ कहते हुए संगीता ने अपना बैग टेबल पर लापरवाही से पटक दिया और आराम से सोफे में धँस गई। ’’और सुना क्या हाल है’’ कहते हुए उसनें मनीषा का हाथ पकड़कर लगभग खींचते हुए उसे