सुबह से यह चौथा फोन था। फोन उठाने का बिल्कुल मन नहीं था ।...पर माँ... माँ समझने को तैयार ही नहीं थी। फोन की घंटियां उसके मन-मस्तिष्क पर हथौड़े की तरह पड़ रही थी। अंततः नेहा ने फोन उठा ही लिया। " हेलो... हाँ माँ बोलो..." "बोलना क्या है... घर में सभी तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहे हैं... तुम किसी की बात का जवाब क्यों नहीं देती।" "माँ... माँ इतना आसान नहीं है यह सब... मुझे सोचने का मौका तो दो....। नेहा ने बुझे स्वर में कहा... "सोचना क्या है इसमें... तुम्हारी बहन की अंतिम इच्छा थी... क्या