साइलैंटि किलिंग

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साइलेंट किलिंग भला ये भी कोई जिंदगी है । पहाड़ से भी बड़ा जानलेवा दर्द । अस्पताल के इस बिस्तर पर पड़े–पड़े कब सुबह होती है, कब शाम होती है, कुछ पता ही नहीं चलता । न दिन का एहसास, न रात का । बस नर्सों और डॉक्टरों का आना–जाना है । पूरे शरीर को नलियों से बेध दिया गया है । कौन सी नली कहां से निकलकर कहां जा रही है, कुछ पता नहीं । नाक के ऊपर हर वक्त सांस लेने के लिए कटोरे नुमा प्लास्टिक का उपकरण जिसके अंदर मुंह भी ढका है, नाक भी । बस