दिलों की एक आवाज ऊपर उठती हुई... तीन सौ पैंसठवीं मंजिल से गिरते हुये जब वह अपने होश—हवास पर कुछ काबू कर पाया तो उसने देखा कि वह नीचे गिरता ही जा रहा है। वह मदद के लिये उस बड़ी इमारत के सामने चिल्लाया लेकिन ऊपर के कई माले हमेशा की तरह सख्त बंद हैं। मकानों की दरारों में से अधिकतर सिगरेट का धुँआं और शराब की गंध लापरवाही से निकल रही है। अपने जिस्म को पत्थर की तरह ठीक सीधे और नीचे ही नीचे जाते देखते हुये उसके दिमाग में सिर्फ मदद......मदद की एक ही आवाज गूँज रही है।