बात बस इतनी सी थी 17. मंजरी की बातों से मुझे उस पर हँसी भी आ रही थी, गुस्सा भी आ रहा था और प्यार भी आ रहा था । इसके साथ ही उसकी सोच पर दया भी आ रही थी कि इतनी पढ़ी-लिखी होकर भी वह न तर्कसंगत सोच सकती है न तथ्यात्मक ! न तो उसको मेरा सच बोलना रास आता है और न ही मेरे झूठ बोलने पर उसको चैन आता है । उसकी अपनी ही सबसे न्यारी एक छोटी-सी दुनिया है, जिसमें वह अकेली विचरती रहती है ! न वह अपनी विचारों की उस छोटी-सी संकरी