क्या कोई इंसान अकेला रह सकता है? कोई संत संन्यासी तो रह सकता है, पर क्या कोई दुनियादारी के प्रपंच में पड़ा हुआ इंसान भी इस तरह रह सकता है? क्यों? इसमें क्या परेशानी है? इंसान के शरीर की बनावट ही ऐसी है कि उसमें ज़रूरत के सब अंग फिट हैं। दुनिया में ज़िंदा रहने के लिए जो प्रणालियां चाहिएं वो तो सब हमारी बॉडी में ही इनबिल्ट हैं, फ़िर अकेले रहने में कैसी परेशानी? नहीं, बात इतनी आसान नहीं है। कई बार किसी नगर में तमाम तरह की रोशनियों के उम्दा प्रबंध होते हैं। सवेरे सूर्य का सुनहरा प्रकाश