आम कहानियों की अपेक्षा अगर किसी कहानी में प्रभावी ढंग से समाज में पनप रही विद्रूपताओं का जिक्र हो तो मेरे ख्याल से उस कहानी की उम्र आम कहानियों की अपेक्षा ज़्यादा लंबी हो जाती है। अधिक समय तक ऐसी कहानियों को किसी ना किसी बात या बहाने के याद रखा जाता है। ऐसी ही कुछ कहानियों को पढ़ने का मुझे मौका मिला जब मैंने आज के समय की सशक्त कहानीकार आंकाक्षा पारे जी के कहानी संग्रह "पिघली हुई लड़की" पढ़ने के लिए उठाया। जहाँ एक तरफ धाराप्रवाह भाषा से लैस उनकी कुछ कहानियाँ अपने अंत या ट्रीटमेंट को ले कर