भाग-2 दोस्तो "ज़िन्दगी के सफ़र में "के पहले भाग में हमने पढा की रॉय साहब एक महाविद्यालय में प्राचार्य है और फिलहाल अपने परिवार को लेकर काफी चिंता में है ।उनकी चिंता का कारण अभी तक पता नहीं चल पाया कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो रॉय साहब इतने परेशान है। इसका जवाब जानने के लिए मैं उनके दफ्तर में गया। वैसे तो मैं केवल इस महाविद्यालय में बाबू के एक छोटे से पद पर ही था पर फिर भी रॉय साहब और मै एक ही उम्र के होने के कारण दोनों एक दूसरे को काफी अच्छे से जानते और समझते