आखा तीज का ब्याह (14) "मम्मा! मम्मा! देखो, देखो!” वन्या का आल्हादित स्वर कानों में पड़ा तो वासंती की तंद्रा टूटी| उसे लगा जैसे वह गहरी नींद से जागी| उसने चौंक कर वन्या की और देखा वह कार से बाहर के नज़ारे देख देख कर खुश हो रही थी| वो लोग रामपुर पहुँचने वाले थे| रामपुर! रामपुर तो वासंती की ननिहाल थी। यहीं पैदा हुई थी वह अपनी नानी के घर, कितनी ही यादें जुडी हैं यहाँ से उसकी| रामपुर से कुछ ही दूरी पर तो है उसका गाँव| वासंती के दिल में ख़ुशी और भय के मिले जुले से