राम रचि राखा (9) समय पंख लगाकर उड़ जाता है। पाँच साल से ज्यादा हो चुके हैं मुन्नर को इस गाँव मे आये हुए। लेकिन आज भी जब वह दिन याद आता है तो आँखों के सामने सारे दृश्य सजीव उठते हैं। अपने गाँव में बीता अंतिम दिन, जेल की यातनाएँ और इस गाँव में, लू के थपेडों के बीच खुले आसमान के नीचे बिताये गए शुरूआती दिन। एक गहरी उच्छ्वास लेते मुन्नर - "जिंदगी भी क्या-क्या करवट बदलती है।" सुबह-शाम तो कुटी पर लोगों की आवाजाही रहती है, परन्तु दोपहर में प्रायः एकांत होता है। बस ललिता पंडित का