डर

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डर बहुत परेशान से लग रहे थे धनंजय नागर यहाँ आकर। जब-जब वे जामनगर आते तब-तब बहुत उत्साहित और प्रफुल्लित रहते। वे उन गलियों में जाते जहाँ वे अपने बचपन में गुल्ली-डंडा खेला करते थे। उन मैदानों में जाते जहाँ धमाचौकड़ी मचाते थे, अधेड़ हो रहे बचपन के अपने तमाम दोस्तों से मिलते, घंटों उनसे गपियाते, बचपन के किस्से याद करते और अपने आज पर बात करते, अपने बच्चों की दिनचर्या की तुलना वे अपने बचपन से करते और खुश होते। बचपन में लगाए गये बाग में जाते, एक-एक पेड़ को स्पर्श करते। उसकी ऊंचाई को महसूस करते। उनकी छाया