कलयुगी सीता--(अंतिम भाग)

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मैं एक पुरूष हूं, तो नारी के जीवन के बारे में मैं क्या कहूं, लेकिन जो नारी एक नए जीवन को दुनिया में लाती हैं, वो कमजोर तो कभी नहीं हो सकती,बस वो मजबूती का दिखावा नहीं करती,ताकि हम पुरूषों का मनोबल बना रहे, अपने लिए सम्मान नहीं चाहती, ताकि हम पुरूषों का स्वाभिमान बना रहे,सारी उम्र सिर्फ वो त्याग ही तो करती हैं और कभी जाहिर नहीं करती, कोई दिल दुखा दे तो कोने में जाके दो आंसू बहाकर अपना मन हल्का कर लेती है,वो कमजोर नहीं होती,बस अपनी शक्ति को वो उजागर नहीं करती। बस,ऐसी ही थी कस्तूरी