महाकवि भवभूति 14 भावनाओं पर प्रहार शम्बूकवध कन्नौज पहंचकर राजकवि वाक्पतिराज ने अगवानी की। वाक्पतिराज तो उम्र में बहुत छोटे थे, पर भवभूति अपने स्वभाव के अनुसार उन्हें मित्र का दर्जा देने लगे थे। धीरे-धीरे उनसे मित्रता का भाव दृढ होता जा रहा था। भवभूति एक ऐसे पड़ाव पर आकर ठहर गये थे, जहाँ उनका चित्त कहीं भी नहीं टिक रहा था। इन दिनों मन बहलाने के लिये विचारों के गहरे सागर में डुबकियाँ लगाने का प्रयास कर रहे थे। इसी समय वाक्पतिराज ने दरवाजा खटखटाया। भवभूति ऊँचे स्वर में बोले- ‘चले आओ यहाँ तो हर