दास्तानगो - 4

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दास्तानगो प्रियंवद ४ दरवाजे पर तेज दस्तक हुयी। यह लड़की की दस्तक से अलग थी। इसमें संकोच और विनम्रता नहीं थी। यह कई हाथों की धमक से भरी थी। द्घोड़ों की हिनहिनाहट, खुरों के पटकने की, लगाम पफटकारने की आवाजें भी थीं। वे दोनों अपने कमरे में आ गए थे। पाकुड़ कच्चा रास्ता पार करके आया। उसने दरवाजे की खिड़की खोली। अंदर पहले एक सिपाही आया, पिफर दूसरा। अंदर आकर वे दोनों एक ओर तन कर खड़े हो गए। कुछ देर बाद तीसरा आदमी अंदर आया। यह बड़ा अपफसर था। वर्दी में था। उसके कंधों पर पीतल के चमकते हुए