फैसला

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फैसला शीशे जैसे नाजुक दिल पर व्यंग्य बाणों के पत्थर बरसेंगेे तो किरचें उडेंगी ही । किरचें जख्मों को जन्म न दें, ऐसा संभव ही नहीं है। समय अंतराल के पश्चात् जख्म नासूर में परिवर्तित होने लगें तो उसमें किसका दोष...समय का या मानव का ? माँ की कोख से जन्म लेने वाला, उसके दिल का टुकड़ा ही यदि नासूर का कारण बन जाये या सब कुछ जानते बूझते भी अनजान बने रहने का स्वांग करे तो ऐसे रिश्ते को हादसा ही कहेंगे...ऐसा ही एक हादसा कमलेश्वर बाबू के साथ हुआ...।जीवन के छत्तीस वर्ष उन्होंने और उनकी