नश्तर खामोशियों के - 5 - अंतिम भाग

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नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 5. उस साल एम.एस. सर्जरी के इम्तिहान दो महीने देरी से हुए थे. अना जुटा हुआ था.उसका कॉलेज में दिखना लगभग बंद हो गया था. घर पर भी बहुत कम आता था. जब भी आता, मेरा अंतर मचल उठता. उसकी तैयारी में, उसके साधनों में, उसके खाने-पीने में कोई कमी तो नहीं...जानने को मैं मचलने लगती. इम्तिहान के दिनों में उसकी भूख बिल्कुल गायब हो जाती थी. मैं लगभग रोज़ ही उसकी मनपसंद कोई-न-कोई चीज़ बना कर टिफ़िन, होस्टल भिजवा देती, शम्भू के हाथों. बदले में आते छोटे-छोटे चार-पांच लाइनों के पुर्जे...कॉपियों से फाड़े गए