गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रसोई में नाश्ता बना रही थी। गोपाल व गूगल भी नाश्ता करने के लिये वहीं आ गये। ‘बेटे गूगल, तू कहे तो आज मैं कुछ सामान ख़रीदने के लिये शहर चला जाऊँ! कई दिनों से शहर जाना ही नहीं हो रहा’, गोपाल ने प्रस्ताव रखा। ‘आप बेफ़िक्र हो कर चले जाएँ। आज आई.टी.आई. में कुछ विशेष काम नहीं है। गाँधी जयंती पर होने वाली प्रतियोगिता के लिये मुझे भी गाँधी जी के तीन बंदरों वाली प्रतिमा बनानी है, यह काम तो मैं घर पर भी कर सकता