आखा तीज का ब्याह (9) “ओहो, अब तो हमारी डॉ. वासंती होटल की मालकिन बन गयी है| अगर कभी हम तुम्हारे यहां घूमने आये तो तिलकजी को कह कर डिस्काउंट तो दिला दोगी ना|” श्वेता ने कुछ शरारत भरे अंदाज़ में वासंती से पूछा| आज वह पूरी तरह से मस्ती के मूड में थी, होती भी क्यों नहीं आज उसकी मेहनत जो रंग लायी थी| वह अपने दोनों दोस्तों वासंती और तिलक को एक साथ खुश देखना चाहती थी और इसीलिए उसने तिलक को होटल खोलने का जो सुझाव दिया था वह तिलक के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा था|