गवाक्ष 28== अट्ठारह वर्ष की होने पर भव्य समारोह में धूमधाम से सत्याक्षरा का जन्मदिन मनाते हुए पिता सत्यालंकार को दिल का भयंकर दौरा पड़ा और परिवार में दुःख और मायूसी के बादलों ने आनंद व प्रसन्नता को अपनी काली चादर के नीचे ढ़क लिया । इतनी शीघ्र बदलाव हो सकता है क्या?जीवन की प्रसन्नताएँ इतनी क्षणभृंगुर! लगता, दिन के उजियारे काल -रात्रि में परिवर्तित हो गए। कुछ ही समय में जीवन की वास्तविकता स्वीकार ली गई, थमा हुआ सा जीवन पुन:गति पकड़ने की चेष्टा में संलग्न हो गया । सत्यनिष्ठ तब तक अपनी शिक्षा पूर्ण करके एक सम्मानीय पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था। वह बहन तथा माँ